आर्थिक संवृद्धि एवं आर्थिक विकास

आर्थिक संवृद्धि एवं आर्थिक विकास
आर्थिक संवृद्धि : आर्थिक संवृद्धि से अभिप्राय किसी समयावधि में किसी अर्थव्यवस्था में होने वाली वास्तविक आय से है। सामान्यतया यदि सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP), सकल घरेलू उत्पाद (GDP) तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हो रही हो तो हम कहते हैं कि आर्थिक संवृद्धि हो रही है। अर्थात आर्थिक संवृद्धि उत्पादन की वृद्धि से संबंधित है जिसमें कि परिमाणात्मक परिवर्तन होते हैं, जो कि श्रम शक्ति, उपभोग, पूँजी और व्यापार की मात्रा में प्रसार के साथ होता है।
नोट : किसी देश की आर्थिक संवृद्धि का सर्वाधिक उपयुक्त मापदण्ड प्रति व्यक्ति वास्तविक आय होता है।


आर्थिक विकास : आर्थिक विकास की धारणा आर्थिक संवृद्धि की धारणा से अधिक व्यापक है। आर्थिक विकास सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक गुणात्मक एवं परिमाणात्मक सभी परिवर्तनों से संबंधित है। आर्थिक विकास तभी कहा जायेगा जब जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो। आर्थिक विकास की माप में अनेक चर सम्मलित किये जाते हैं, जैसे-आर्थिक, राजनैतिक तथा सामाजिक संस्थाओं के स्वरूप में परिवर्तन, शिक्षा तथा साक्षरता दर, जीवन प्रत्याशा, पोषण का स्तर, स्वास्थ्य सेवाएँ, प्रति व्यक्ति उपभोग वस्तुएँ। अतः

आर्थिक विकास मूलतः मानव विकास ही है। भारतीय मूल के नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री प्रो. अमर्त्य सेन ने आर्थिक विकास को अधिकारिता तथा क्षमता के विस्तार के रूप में परिभाषित किया है, जिसका तात्पर्य जीवन-पोषण, आत्म-सम्मान तथा स्वतंत्रता है। महबूब ऊल हक ने आर्थिक विकास को 'गरीबी के विरुद्ध लड़ाई' के रूप में परिभाषित किया चाहे वह गरीबी किसी रूप की हो ।