नोट : 1862 ई. में लॉर्ड कैनिंग ने तीन भारतीयों-बनारस के राजा, पटियाला के महाराजा और सर दिनकर राव को विधानपरिषद् में मनोनित किया।
* 1873 ई. का अधिनियम : इस अधिनियम द्वारा यह उपबन्ध किया गया कि ईस्ट इंडिया कंपनी को किसी भी समय भंग किया जा सकता है। 1 जनवरी, 1884 ई. को ईस्ट इंडिया कंपनी को औपचारिक रूप से भंग कर दिया गया।
* शाही उपाधि अधिनियम, 1876 ई. : इस अधिनियम द्वारा गवर्नर जनरल की केन्द्रीय कार्यकारिणी में छठे सदस्य की नियुक्ति कर उसे लोक निर्माण विभाग का कार्य सौंपा गया। 28 अप्रैल, 1876 ई. को एक घोषणा द्वारा महारानी विक्टोरिया को भारत की सम्राज्ञी घोषित किया गया ।
* 1892 ई. का भारत परिषद् अधिनियम : इस अधिनियम की मुख्य विशेताएँ हैं— 1. अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली की शुरुआत हुई, 2. इसके द्वारा राजस्व एवं व्यय अथवा बजट पर बहस करने तथा कार्यकारिणी से प्रश्न पूछने की शक्ति दी गई।
* 1909 ई. का भारत परिषद् अधिनियम (मार्ले-मिन्टी सुधार) : 1. पहली बार मुस्लिम समुदाय के लिए पृथक् प्रतिनिधित्व का उपबन्ध किया गया। इसके अन्तर्गत मुस्लिम सदस्यों का चुनाव मुस्लिम मतदाता ही कर सकते थे। इस प्रकार इस अधिनियम ने सांप्रदायिकता को वैधानिकता प्रदान की और लॉर्ड मिंटो को साम्प्रदायिक निर्वाचन के जनक के रूप में जाना गया। 2. भारतीयों को भारत सचिव एवं गवर्नर जेनरल की कार्यकारिणी परिषदों में नियुक्ति की गई। 3. केन्द्रीय और प्रान्तीय विधान परिषदों को पहली बार बजट पर वाद-विवाद करने, सार्वजनिक हित के विषयों पर प्रस्ताव पेश करने, पूरक प्रश्न पूछने और मत देने का अधिकार मिला 4. प्रान्तीय विधान परिषदों की संख्या में वृद्धि की गयी। 5. सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा वायसराय की कार्यपालिका परिषद् के प्रथम भारतीय सदस्य बने। उन्हें विधि सदस्य बनाया गया। 6. इस अधिनियम के तहत प्रेसीडेंसी कॉर्पोरेशन, चैंबर्स ऑफ कॉमर्स, विश्वविद्यालयों और जमींदारों के लिए अलग प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया गया।
नोट: 1909 ई. में लॉर्ड मॉर्ले इंग्लैंड में भारत के राज्य सचिव थे और लॉर्ड मिंटो भारत के वायसराय ।
* 1919 ई. का भारत शासन अधिनियम (माण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार) : इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ हैं— 1. केन्द्र में द्विसदनात्मक विधायिका की स्थापना की गयी- प्रथम राज्य परिषद् तथा दूसरी केन्द्रीय विधानसभा राज्य परिषद् के सदस्यों की संख्या 60 थी; जिसमें 34 निर्वाचित होते थे और उनका कार्यकाल 5 वर्षों का होता था । केन्द्रीय विधानसभा के सदस्यों की संख्या 144 थी, जिनमें 104 निर्वाचित तथा 40 मनोनीत होते थे। इनका कार्यकाल 3 वर्षों का था। दोनों सदनों के अधिकार समान थे। इनमें सिर्फ एक अन्तर था कि बजट पर स्वीकृति प्रदान करने का अधिकार निचले सदन को था 2. प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली का प्रवर्तन किया गया (प्रांतों में द्वैध शासन के जनक 'लियोनस कार्टियस' थे।)। 3. इस योजना के अनुसार प्रान्तीय विषयों को दो उपवर्गों में विभाजित किया गया—आरक्षित तथा हस्तान्तरित या अन्तरित
आरक्षित विषय: वित्त, भूमि कर, अकाल सहायता, न्याय, पुलिस, पेंशन, आपराधिक जातियाँ (criminal tribes), छापाखाना, समाचारपत्र, सिंचाई, जलमार्ग, खान, कारखाना, बिजली, गैस, वॉयलर, श्रमिक कल्याण, औद्योगिक विवाद, मोटरगाड़ियाँ, छोटे बन्दरगाह और सार्वजनिक सेवाएँ आदि । हस्तान्तरित विषय : शिक्षा, पुस्तकालय, संग्रहालय, स्थानीय स्वायत्त शासन, चिकित्सा सहायता, सार्वजनिक निर्माण विभाग, आबकारी, उद्योग, तौल तथा माप, सार्वजनिक मनोरंजन पर नियंत्रण, धार्मिक तथा अग्रहार दान आदि । नोट: आरक्षित विषयों का प्रशासन गवर्नर और उसकी कार्यकारी परिषद् के माध्यम से किया जाना था, जबकि हस्तान्तरित विषयों का प्रशासन गर्वनर द्वारा विधान परिषद् के प्रति उत्तरदायी मंत्रियों की सहायता से किया जाना था। (इस द्वैध शासन प्रणाली को 1935 ई. के एक्ट के द्वारा समाप्त कर दिया गया।)
4. भारत सचिव को अधिकार दिया गया कि वह भारत में महालेखा परीक्षक की नियुक्ति कर सकता है। 5. इस अधिनियम ने भारत में एक लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान किया। अतः 1926 ई. में ली आयोग (1923-24) की सिफारिश पर सिविल सेवकों की भर्ती के लिए केन्द्रीय लोक सेवा आयोग का गठन किया गया। 6. इस अधिनियम के अनुसार वायसराय की कार्यकारी परिषद् में छह सदस्यों में से (कमांडर-इन-चीफ को छोड़कर) तीन सदस्यों का भारतीय होना आवश्यक था। 7. इसने सांप्रदायिक आधार पर सिक्खों, भारतीय ईसाइयों, आंग्ल-भारतीयों और यूरोपीयों के लिए भी पृथक निर्वाचन के सिद्धांत को विस्तारित कर दिया। 8. इसमें पहली बार केन्द्रीय बजट को राज्यों के बजट से अलग कर दिया गया। 9. इसके अंतर्गत एक वैधानिक आयोग का गठन किया गया जिसका कार्य दस वर्ष बाद जाँच करने के बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करना था । 10. इस अधिनियम में केन्द्रीय विधान सभा में वायसराय के अध्यादेश जारी करने की शक्तियों को निम्न रूप में बनाए रखा गया : (a) कुछ विषयों से संबंधित विधेयकों को विचारार्थ प्रस्तुत करने के लिए उसकी पूर्व अनुमति आवश्यक थी, (b) उसे भारतीय विधान सभा द्वारा पारित किसी भी विधेयक को वीटो करने या सम्राट के विचार के लिए आरक्षित करने की शक्ति थी, (c) उसे यह शक्ति थी कि विधानमंडल द्वारा नामंजूर किए गए या पारित न किए गए किसी विधेयक या अनुदान को प्रमाणित कर दे तो ऐसे प्रमाणित विधेयक विधान मंडल द्वारा पारित विधेयक को समान हो जाते थे, (d) वह आपात स्थिति में अध्यादेश बना सकता था जिनका अस्थायी अवधि के लिए विधिक प्रभाव होता था ।
नोट: माण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार (भारत शासन अधिनियम-1919) द्वारा भारत में पहली बार महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिला । उस समय इंग्लैंड का प्रधानमंत्री लॉयड जार्ज था।
* 1935 ई. का भारत शासन अधिनियम 1935 ई. के अधिनियम में 321 अनुच्छेद और 10 अनुसूचियाँ थीं। इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
1. अखिल भारतीय संघ : यह संघ 11 ब्रिटिश प्रान्तों, 6 चीफ कमीश्नर के क्षेत्रों और उन देशी रियासतों से मिलकर बनना था, जो स्वेच्छा से संघ में सम्मिलित हों । प्रान्तों के लिए संघ में सम्मिलित होना अनिवार्य था, किन्तु देशी रियासतों के लिए यह ऐच्छिक था । देशी रियासतें संघ में सम्मिलित नहीं हुई और प्रस्तावित संघ की स्थापना संबंधी घोषणा पत्र जारी करने का अवसर ही नहीं आया।
2. प्रान्तीय स्वायत्तता : इस अधिनियम के द्वारा प्रांतों में द्वैध शासन व्यवस्था का अन्त कर उन्हें एक स्वतंत्र और स्वशासित संवैधानिक आधार प्रदान किया गया।
3. केन्द्र में द्वैध शासन की स्थापना : इस अधिनियम में विधायी शक्तियों को केन्द्र और प्रांतीय विधान मंडलों के बीच विभाजित किया गया। इसके तहत परिसंघ सूची, प्रांतीय सूची एवं समवर्ती सूची का निर्माण किया गया।